बाल केंद्रित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका, बाल केंद्रित शिक्षण में शिक्षक का महत्व, बाल केंद्रित शिक्षण में शिक्षक का स्थान, Bal Kendrit shikshan me shikshak ki bhumika

बाल केंद्रित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका ( The Role of Teacher in Child Centred Teaching )
बाल केंद्रित शिक्षण में शिक्षक बालकों का सहयोगी, सेवक तथा मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है l वह बालकों का सभी प्रकार से मार्गदर्शन करता है और विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से बालकों को सीखने में मदद करता है l
शिक्षक जब कक्षा में पढ़ाने जाता है, तो उस शिक्षक के सामने बालक होता है और विषय वस्तु होती है l शिक्षण द्वारा शिक्षक अपने और विषय वस्तु के मध्य एक संबंध बनाता है l यही संबंध बच्चे के सर्वांगीण विकास में सहायता देकर उसे भविष्य में समाज का योग्य और सृजनशील नागरिक बनाने का काम करता है l क्योंकि बालक को शिक्षण अधिगम का सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक बनाया है l इसलिए एक सफल शिक्षक के लिए आवश्यक है कि अपने विषय के साथ-साथ वह उस बच्चे को भलीभांति जाने जिस शिक्षित करना है यह कहना पूर्णता सत्य है l
“शिक्षक वह अधूरी है जिस पर बाल-केंद्रित शिक्षण कार्यरत है” l बाल केंद्रित शिक्षण में शिक्षक माली के सृदश पौधे के समान बालकों का पोषण करके उनका शारीरिक, मानसिक और तथा सामाजिक विकास करता है l शिक्षक ही बालक को पशु प्रवृत्ति से निकालकर मानवीय प्रवृत्ति की ओर उन्मुख करता है l
बाल केंद्रित शिक्षण एवं बाल केंद्रित उपागम में भेद :-
बाल केंद्रित शिक्षण :-
बाल केंद्रित शिक्षण बालक की सूचियों प्रवृत्तियां तथा क्षमताओं को ध्यान में रखकर आयोजित किया जाता हैl इस शिक्षण के द्वारा बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण सम्मान करते हुए उसके सर्वांगीण विकास का प्रयास किया जाता है l पाठ्यक्रम, पाठ्य सामग्री, समय, स्थान तथा मूल्यांकन पद्धतियों बच्चों के अनुकूल रखी जाती है l
बाल केंद्रित उपागम :-
बाल केंद्रित उपागम एक दृष्टिकोण है जिसके द्वारा बालक को शैक्षणिक कार्यक्रम का मुख्य आधार बनाया गया है l
बाल केंद्रित उपागम शिक्षण प्रक्रिया का विश्लेषण करने का एक तर्कपूर्ण विधि है जो कि बाल केंद्रित शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाती है l इस उपागम में बाल केंद्रित शिक्षण के सभी पक्षों एवं अंगों का समावेश रहता है l जैसे कि छात्र, शिक्षक, विषय वस्तु, शैक्षणिक सामग्री, शिक्षण प्रणाली, शिक्षण प्रविधि, भौतिक परिवेश एवं शैक्षिक उद्देश्यों का मूल्यांकन इत्यादि l