पुष्यभूति वंश या वर्धन वंश : हर्ष वर्धन (Pushyabhuti Dynasty)
वर्धन वंश (Vardhana Dynasty) को पुष्यभूति वंश (Pushyabhuti Dynasty) भी कहा जाता है l
गुप्त काल से लगभग 100 वर्ष के बाद उत्तर भारत में एक नई शक्ति का उदय हुआ जो पुष्यभूति वंश या वर्धन वंश के नाम से प्रसिद्ध हुए। उसकी राजधानी थानेश्वर (वर्तमान अंबाला जिला) थी। इस वंश का संथापक पुष्यभूति था l पुष्यभूति शैव मत का अनुयायी था l
इस वंश में तीन राजा हुए – प्रभाकर वर्धन और उसके दो पुत्र राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन l
इस वंश के प्रथम राजा प्रभाकरवर्धन था जिन्होंने हूणों को उत्तर पश्चिम भारत से बाहर खदेड़ दिया था। प्रभाकरवर्धन के 2 पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन तथा पुत्री राज्यश्री थी।
हर्षवर्धन (606 ई. से 647 ई.तक)
हर्षवर्धन 16 वर्ष की आयु में 606 ईसवी में गद्दी पर बैठा था। हर्ष की प्रारंभिक राजधानी थानेश्वर थी। बाद में उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई। हर्षवर्धन स्वयं विद्वान थे तथा वह विद्वानों के आश्रय दाता भी थे। हर्ष ने संस्कृत में तीन नाटकों नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका की रचना की थी। बाणभट्ट हर्ष के दरबारी कवि थे , जिन्होंने हर्ष चरित्र लिखा है। चीनी यात्री ह्वेनसांग उनके शासनकाल में आया ह्वेनसांग 15 वर्षों तक भारत में रहा। हर्षवर्धन को शिलान्यास के नाम से भी जाना जाता था l हर्षवर्धन ने शिलान्यास नाम की उपाधि ली थी l हर्ष वर्धन महायान शाखा का अनुयायी था l इसने प्रयागराज में महा सम्मेलन का आयोजन कराया था l दान देने की प्रवृति के कारण इसे हातिम कहा जाता था l
ह्वेनसांग की नजर में वर्धन काल :-
हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था l इसकी प्रसिद्ध रचना सी-यू-की है l इस पुस्तक में हर्षकालीन समाज की आर्थिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति के विषय में जानकारी मिलती है l इसे यात्रीयों में राजकुमार, नीति का पंडित और शाक्य मुनि आदि उपनामों से जाना जाता है l
हर्षवर्धन एक प्रजा पालक एवं उद्धार शासक थे। उन्होंने जिन राज्यों पर विजय प्राप्त की थी। उन राज्यों ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली। हर्षवर्धन ने अपने संपूर्ण साम्राज्य की व्यवस्था के लिए उसे प्रांतों विषयों तथा ग्रामों में विभाजित किया था। उसके शासन में अपराध कम होते थे। अपराध करने वाले को कठोर दंड दिया जाता था। हर्ष का बौद्ध धर्म से लगाव था। उन्होंने कन्नौज में एक विशाल धर्मसभा बुलाई। वह बहुत ही दानी भी थे। वह हर 5 वर्ष में प्रयाग के मेले में दान करते थे।
नालंदा का विश्व प्रसिद्ध विद्यालय विश्वविद्यालय हर्ष के राज्य में था। यहां धर्म के अतिरिक्त व्याकरण, तर्क, चिकित्सा, विज्ञान शिल्प और उद्योग की भी शिक्षा दी जाती थी। धार्मिक स्वभाव था धार्मिक लोगों के विचारों में मतभेद नहीं था। ह्वेनसांग ने यहां शिक्षा ग्रहण की तथा शिक्षण का कार्य भी किया।
647 ईसवी में हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई। उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद केंद्रीय शासन सत्ता छिन्न-भिन्न हो गई और उत्तर तथा दक्षिण भारत में छोटे-छोटे राजवंशों का स्थापना हो गई। हर्ष वर्धन अंतिम शासक के रूप में जाना जाता है l यह अंतिम बौद्ध शासक था हर्ष वर्धन संस्कृत का महान लेखक व विद्वान था l