मौर्य साम्राज्य
बौद्ध स्रोतों के अनुसार नंद वंश के शासक धनानंद द्वारा अपमानित आचार्य कौटिल्य ने बालक चंद्रगुप्त को राजकीलकम नामक खेल खेलते हुए देखा। बालक में विलक्षण नेतृत्व प्रतिभा देखकर चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया और अपने साथ तक्षशिला ले जाकर विविध कलाओं की शिक्षा दी। चंद्रगुप्त ने चाणक्य की कूटनीति एवं रण कौशल द्वारा नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को पराजित कर 322 ईसा पूर्व में मगध में मौर्य समाज की स्थापना की। यूनानी सेनापति सेल्यूकस ने 305 ईसा पूर्व में पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया जिसे चंद्रगुप्त ने परास्त कर दिया। सेल्यूकस को चंद्रगुप्त से एक संधि करनी पड़ी जिससे चंद्रगुप्त को हिंदूकुश पर्वत तक के प्रांत उपहार में मिले। सेल्यूकस ने मेगास्थनीज नामक राजदूत चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा। इस प्रकार चंद्रगुप्त ने भारत में प्रथम बार एक केंद्रीय शासन के अंतर्गत विशाल मौर्य साम्राज्य स्थापित कर लिया।
मौर्य साम्राज्य का प्रशासन
मेगास्थनीज की इंडिका और कौटिल्य के अर्थशास्त्र पुस्तकों से मौर्य के विशाल प्रशासन तंत्र की जानकारी मिलती है। चंद्रगुप्त सारे अधिकार अपने ही हाथों में रखे हुए थे। राजा की सहायता के लिए एक मंत्री परिषद गठित थी जिसके सदस्य राजा को सलाह देते थे। चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री थे।
• इतने बड़े साम्राज्य के अच्छे प्रशासन के लिए तीन स्तरों की शासन व्यवस्था थी
- प्रांत
- जनपद
- नगर / गांव
• इस समय नौकरशाही व्यवस्था थी।
• वेतन राज्य कोष से दिया जाता था।
• प्रांत से लेकर गांव तक की वस्तुस्थिति को राजा समय-समय पर दौरा करके स्वयं भी देखता था।
• गुप्तचर पूरे साम्राज्य की सूचना राजा को देते थे।
• बाहरी आक्रमण व आंतरिक विद्रोह को दबाने के लिए पैदल, हाथी, घोड़े व जल सेना राजा के पास थी।
• इतनी बड़ी व्यवस्था चलाने के लिए दैनिक की आवश्यकता थी जिसके लिए राजा की नीति खजाने को हमेशा भरा रखने की थी। इस समय राजस्व व्यवस्था बहुत अच्छी थी।
• कृषि कर, सिंचाई कर, व्यवसायिक संगठनों पर बिक्री कर आदि आए के मुख्य स्रोत थे। इन करों को बड़ी सावधानी से इकट्ठा किया जाता था।
• इन करो का लेखा-जोखा रखा जाता था।
• राज्य में आने वाले जंगलों एवं खानों पर राजा का स्वामित्व होता था।
• राज्य अपनी सेना के लिए हथियारों का निर्माण करता था।
लगभग 2600 वर्ष पहले के शासन का ढांचा आज भी हमारे देश के शासन के ढांचे से मिलता है।
चंद्रगुप्त के बाद उनका बेटा बिंदुसार मगध की गद्दी पर बैठा। बिंदुसार के बाद उसका बेटा अशोक मगध का सम्राट बना। चंद्रगुप्त मौर्य ने जो साम्राज्य स्थापित किया था उसमें से कलिंग स्वतंत्र हो गया था। उत्तराधिकारी प्राप्त करने के बाद अशोक के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कलिंग पर विजय प्राप्त करना। अशोक ने ऐसा फैसला किया जो आमतौर पर कोई राजा नहीं करता था। उसने कलिंग को युद्ध में हराने के बाद तय किया कि वह भविष्य में कोई युद्ध नहीं लड़ेगा।
अशोक का धम्म ( धर्म को पाली भाषा में धम्म कहते हैं)
अशोक स्वयं राज्य में दूर-दूर की जगहों का दौरा करता था। अशोक ने अपने राज्य में जगह-जगह चट्टानों पर लंबे सुंदर चमकाए हुए पत्थरों से बने खंबे गड़वाए। इन खंभों पर वहां के अधिकारियों व लोगों के लिए अपने संदेश भी खुदवाय ताकि लोग उसकी बातों पर ध्यान दे सके। उसने यह संदेश लोगों की बोलचाल की भाषा यानी प्राकृत भाषा में लिखवाए चट्टानों व खंभों पर खुदे उसके संदेशों से हम अशोक के समय की बातें जान सकते हैं। उसने जीवन के बारे में प्रजा को सही राह दिखाने के लिए अलग से अधिकारी रखे जिसे धम्म महापात्र कहा गया। उनका काम था गांव-गांव, नगर-नगर जाकर लोगों को सही व्यवहार की बातें बताएं।
मेगास्थनीज ने अपनी भारत यात्रा विवरण में उन चीजों के बारे में जिक्र किया है जो उसे आश्चर्यजनक लगी थी:-
• मेगास्थनीज की नजर में लोग सभ्य थे वे अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे।
• वे अपनी कही बातों का पालन करते थे।
• वे झूठी गवाही नहीं देते थे।
• उनके महल सोने चांदी से बने थे।
• मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र का क्षेत्रफल 9 मील लंबा डेढ़ मील चौड़ा था।
• तक्षशिला से पाटलिपुत्र तक की सड़कों के दोनों और छायादार वृक्ष तथा जगह-जगह पर हुए थे।
अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और बेटी संघमित्रा को अपने संदेश के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा। अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में एकरूपता लाने के लिए पाटलिपुत्र में एक बड़ी सभा की जिसे तीसरी बौद्ध संगीति भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त अशोक ने बौद्ध स्तूपों एवं बौद्ध विहारों का निर्माण करवाया। सांची स्तूप के निर्माण की शुरुआत उसी ने कराई थी। पीठ से पीठ सटा कर बैठे हुए चार सिंह हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है। इसे अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया है।
मौर्य साम्राज्य का पतन
वंशानुगत साम्राज्य तभी तक बने रहते हैं जब तक योग्य शासकों की कड़ी बनी रहती है। अशोक के दुर्बल उत्तराधिकारीओं के कारण दूरस्थ प्रांत स्वतंत्र होने लगे। देश में विदेशी आक्रमण होने लगे जिससे धीरे-धीरे साम्राज्य की शक्ति कमजोर होती गई। पुष्यमित्र शुंग जो मौर्य साम्राज्य में सेनापति था ने अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर मौर्य साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
मौर्य साम्राज्य
• चंद्रगुप्त मौर्य 322 से 298 ईसा पूर्व
• बिंदुसार 298 से 273 ईसा पूर्व
• अशोक 273 से 236 ईसा पूर्व
• बृहद्रथ अंतिम शासक
संगम साहित्य
मौर्य साम्राज्य के समकालीन सुदूर दक्षिण में 3 राज्य चोल, चेर एवं पांडेय थीm इन राज्यों के इतिहास की जानकारी तमिल भाषा के प्राचीनतम साहित्य संगम साहित्य में मिलती है, जो प्रथम शताब्दी में लिखा गया था। इससे इन राज्यों के जीवन एवं संस्कृति का पता चलता है।
विश्व के इतिहास में अशोक के समान उधार वह मानवतावादी सम्राट आज तक नहीं हुआ है।