सिंधु घाटी सभ्यता || Indus Valley Civilization ||हड़प्पा सभ्यता || Harappan Civilization || सिंधु सरस्वती सभ्यता ||
प्रस्तावना
हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता यह विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताआों में से एक प्रमुख सभ्यता है l सिंधु घाटी सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और सिंधु सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है l सिंधु घाटी सभ्यता का कालखड लगभग 2500 BC से 1520 BC तक माना जाता है l इसका विकास सिंधु और सरस्वती नदीयों के किनारे हुआ था l इसलिए इस सभ्यता का नाम सिंधु घाटी सभ्यता पड़ा है l सर जॉन मार्शल ने सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया था l जिसे आद्य ऐतिहासिक युग का माना गया है l हड़प्पा सभ्यता मेसोपोटामिया सभ्यता की समकालीन मानी जाती है l 1819 में हड़प्पा की खोज दयाराम साहनी ने की थी तथा मोहनजोदड़ो की खोज रखलदास बनर्जी ने की थी
सिंधु घाटी सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता
सन 1921 की बात है जब भारत में अंग्रेजों का राज था। इसी वर्ष पुरातत्वविदों ने पंजाब प्रांत में हड़प्पा नामक स्थल की खोज की। इस स्थल से प्राप्त अवशेषों के अध्ययन से पुरातत्वविदों को ज्ञात हुआ कि यह एक नगरी सभ्यता के अवशेष हैं। इसी प्रकार सिंध प्रांत में एक और गांव मिला जिसको लोग मोहनजोदड़ो कहते थे। मोहनजोदड़ो सिंधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है मुर्दे का टीला या मृतकों का टीला l यहां से भिन्न नगरीय सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा नामक स्थल से इस सभ्यता के अवशेष सबसे पहले मिले थे इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है।
पुरातत्वविदों ने इन स्थलों की विस्तृत खुदाई की वह नीचे दबे हुए पूरा का पूरा नगरीय सभ्यता का उत्खनन किया इस प्रकार विश्व के सामने एक अति प्राचीन सभ्यता का ज्ञान हुआ।
सिंधु घाटी सभ्यता के चरण :-
- प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300 ई पू – 2600 ई पू तक )
- परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600 ई पू से 1900 ई पू तक)
- उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900 ई पू से 1300 ई पू तक)
नगर ही नगर –
धीरे-धीरे आगे और खोज हुई कई जगहों पर खुदाई की गई तो पता चला कि उस समय एक नहीं दो नहीं कई नगर सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों की घाटी में बसे हुए थे। इस सभ्यता के कुछ क्षेत्र आज पाकिस्तान में भारत में रोपड़ ( पंजाब) कालीबंगा ( राजस्थान) लोथल ( गुजरात) तथा दायमाबाद ( महाराष्ट्र) इस सभ्यता से संबंधित मुख्य पुरास्थल है।
नगरों की विशेषताएं –
हड़प्पा कालीन नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर किया गया था। सड़कें चौड़ी थी तथा वह छोटी-छोटी सड़कों एवं गलियों से जुड़ी थी। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थी। सड़कों के किनारे पक्की नालियां बनी थी हर घर की नाली बड़े नालों से मिल जाती थी। हर नाली में हल्की सी ढाल होती थी ताकि पानी आसानी से बह सके। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग सफाई और स्वच्छता के प्रति काफी जागरूक थे।
भवन निर्माण –
उत्खनन में कई तरह की बड़ी-बड़ी इमारतें मिली है जो आयताकार थी। कई दो मंजिले घर थे तो कुछ छोटे-छोटे घर थे। हड़प्पा मोहनजोदड़ो एवं अन्य स्थलों की खुदाई से पता चलता है कि हड़प्पा कालीन भवनों का निर्माण एक सुनिश्चित योजना के अंतर्गत किया गया था। प्रत्येक घर के बीच में एक आंगन होता था। आंगन के चारों ओर कमरे बने हुए थे। प्रत्येक घर में रसोईघर, शौचालय तथा स्नानघर का उचित प्रबंध था। दो मंजिला मकान में ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी हुई थी। हड़प्पा सभ्यता में दीवारें पक्की ईंटों से बनी हुई थी। इससे पता चलता है कि उसमें ईट पकाने की भट्टी रही होंगी। हड़प्पा सभ्यता के नगरों की खुदाई में पक्के घरों के अलावा बड़े-बड़े गोदाम मिले हैं। आसपास के गांवों से अनाज इकट्ठा करके इन्हीं गोदामों में रखा जाता रहा होगा। घर और गोदामों के अलावा मोहनजोदड़ो में एक बड़ा सा पक्का स्नानघर मिला है। इसके चारों तरफ कमरे बने हुए थे।
रहन सहन –
चावल गेहूं और जो हड़प्पा वासियों के मुख्य भोज्य पदार्थ थे। यह लोग सूती और ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। यहां के निवासी गेहूं, जौ, कपास, मटर, तिल और चावल की खेती करते थे। ऊंचे कंधों वाले बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर, हाथी और ऊंट इनके पालतू पशु थे। हड़प्पा निवासी हार, अंगूठी, पायल, कंगन इत्यादि इनके प्रिय आभूषण थे। मनके बनाने का कारखाना चन्हूदड़ो से प्राप्त हुआ है।
देवी देवता –
हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन के दौरान एक मूर्ति प्राप्त हुई है। यह मूर्ति मिट्टी की बनी थी। संभवत यह मिट्टी की मूर्ति उन लोगों की देवी की मूर्ति थी पत्थर के चौकोर पट्टे पर एक आकृति के सिर पर बहन से का सिंह का चित्र है। उसके चारों तरफ कई जानवर बने हैं यह कोई देवता होंगे। संभवत सिंधु वासी इन्हें पशुओं का देवता मानकर पूजते होंगे। इसके अलावा कुछ मोहरों पर पीपल की पत्तियां और सांप की आकृतियां जैसी भी बनी मिली है। शायद वे इन सब की पूजा करते थे। इन बातों का हम अंदाजा लगा सकते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के धर्म के चार मुख्य विशेषताएं थी।
• मातृ शक्ति की उपासना
• शिव की पूजा
• वृक्ष पूजा
• पशु पूजा
काम धंधे –
खुदाई में तांबे और कहां से की बनी हुई कुल्हाड़ी, दर्पण, आरियां, कंघियां, उस्तरा, प्राप्त हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि सिंधु घाटी के लोग जमीन में से धातु निकालने और उसे साफ करने तथा गला का चीजें बनाने के तरीके से परिचित थे। आश्चर्य की बात तो यह है कि धातु की चीजें बनाने के साथ-साथ लोग पत्थर के औजार भी बनाया करते थे। इसका कारण शायद यह था कि तांबा व कौन सा जैसी पता तू है पत्थर की तुलना में बहुत ज्यादा मजबूत नहीं थी यह धातुएं हर जगह आसानी से मिल भी नहीं पाती थी इसलिए लोग कहीं और जा पहले की तरह पत्थर के ही बनाते थे। उस समय चक्के का इस्तेमाल मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए भी होने लगा था। इसलिए पहले की तुलना में बहुत अच्छे किस्म के बर्तन बनाए जाने लगे।
वस्तु विनिमय –
हड़प्पा सभ्यता के लोग वस्तु के बदले दूसरी वस्तुओं को ले देकर व्यापार करते थे। इसके लिए वे रुपए सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। उस समय रुपए पैसों का प्रचलन नहीं था।
व्यापार –
हड़प्पा के नगरों से पत्थर हाथी दांत , धातु एवं मिट्टी की बनी वस्तुएं मिली है। कुछ विद्वान सोचते हैं कि यह वास्तव में व्यापारियों की मोहरे थी। यह विभिन्न आकार की हैं इन मोहरों पर आदमी की आकृतियां , कुछ पर जानवरों की पौधों की और कुछ पर बर्तनों की आकृतियां बनी हुई है। व्यापारी जब एक जगह से दूसरी जगह सामान बेचते थे तो सामान बांध का उस पर गीली मिट्टी छापते होंगे और गीली मिट्टी पर अपनी मुहर से छाप बना देते रहे होंगे ताकि उनके सामान की पहचान बनी रहे। तोल और नाप के लिए बटखरे और पैमाने का प्रयोग करते थे। ऐसी मोहरे दूसरे देशों में भी पाई गई हैं। खासकर मेसोपोटामिया (इराक) इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता का व्यापार की इराक तक फैला था।
लिखावट या हड़प्पा लिपि-
हड़प्पा सभ्यता के मोहरों पर संकेत के रूप में लेख लिखे मिले हैं जिससे उनके अक्षर चित्र जैसे लगते हैं। विद्वान आज भी इन लिखावट को पढ़ नहीं सके। इसलिए हड़प्पा सभ्यता को आद्य ऐतिहासिक युग के अंतर्गत रखते हैं। खुदाई से मिले अवशेषों के आधार पर ही हम इस सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
हड़प्पा संस्कृति के लोथल क्षेत्र में मिले बंदरगाह के अवशेषों से पता चलता है कि यह लोग नदी या समुद्र से व्यापार करते थे। लोथल मुख्यतः व्यापारिक नगर रहा होगा। क्योंकि यहां से बंदरगाह मुहरे तथा गोदाम के अवशेष मिले हैं। नगर निर्माण योजना के साथ-साथ अन्य विशेषताओं के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस की शासन व्यवस्था काफी मजबूत रही होगी। युद्ध संबंधी अस्त्र शस्त्रों के ना मिलने के कारण कहा जा सकता है कि राज्य में शांति एवं सुव्यवस्था थी।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन-
आज से 4000 साल पहले हड़प्पा में नगर बने हुए थे यह नगर लगभग 1000 साल तक बने रहे l फिर किसी कारण से नष्ट हो गए और मिट्टी में दब गए।
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं :-
- सिंधु घाटी सभ्यता का लगभग 1800 ई.पू. में पतन हो गया था, परंतु उसके पतन के कारण अभी भी विवादित हैं।
- एक सिद्धांत यह कहता है कि इंडो -यूरोपियन जनजातियों जैसे- आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता पर आक्रमण कर दिया तथा उसे हरा दिया ।
- सिंधु घटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई तत्त्व पाए गए जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण एकदम विलुप्त नहीं हुई थी ।
- इतिहासकारों का मानना है कि लगातार भूकंप हुआ प्राकृतिक आपदा के कारण सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हो गया था
- जलवायु परिवर्तन सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का प्रमुख कारण माना जाता है l
- पुरातत्त्वविद सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्रकृति जन्य मानते हैं।
- नदियों द्वारा अपना मार्ग बदल लेना जिसके कारण खेती यह कृषि व्यवस्था बदहाल हो गई थी यह भी हड़प्पा सभ्यता के पतन का प्रमुख कारण हो सकता है l
इस नगर के पतन के क्या कारण हो सकते हैं? बाढ़ भूकंप, महामारी, आक्रमण, आग या फिर आर्यों का आक्रमण। हड़प्पा सभ्यता के नगरों के खत्म होने के बाद कई 100 सालों तक हड़प्पा में कोई नगर नहीं बने
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