Devanagari Script
देवनागरी लिपि को लोक नागरी एवं हिंदी लिपि के नाम से भी जाना जाता है। देवनागरी का नामकरण विवादास्पद है । ज्यादातर विद्वान गुजरात के नागर ग्रामीणों से इसका संबंध जोड़ते हैं। उनका मानना है कि गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग नागर ब्राह्मणों के नाम से इसे नागरिक कहा गया। अपने अस्तित्व में आने के तुरंत बाद इसने देव भाषा संस्कृत को लिपिबद्ध किया। इसलिए नागरी में देव शब्द जुड़ गया अब बन गया देवनागरी ।
देवनागरी लिपि का स्वरूप:-
- यह लिपि बाई ओर से दाएं और लिखी जाती है जबकि फ़ारसी लिपि ( उर्दू,अरबी,फारसी भाषा की लिपि) दाई और सेवाएं और लिखी जाती है।
- यह अक्षरात्मक लिपि है जबकि रोमन लिपि वर्णनात्मक लिपि है।
देवनागरी लिपि के गुण:-
- यहां एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण संकेत करता है।
- एक वर्ण संकेत से अनिवार्यत: एक ही ध्वनि व्यक्त होती है।
- जो ध्वनि का नाम वही वर्ण का नाम होता है।
- मूक का वर्णन नहीं है।
- एक वर्ण में दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं होता उच्चारण के सूक्ष्म भेद को भी प्रकट करने की क्षमता होती है
- वर्णमाला ध्वनि वैज्ञानिक पद्धति के बिल्कुल अनुरूप है ।
- प्रयोग बहुत व्यापक है। ( संस्कृत हिंदी मराठी नेपाली की एकमात्र लिपि)
- भारत के अनेक नीतियों के निकट है।
देवनागरी लिपि के दोष:-
- कुल मिलाकर 403 टाइप होने के बाद टंकण मुद्रण में कठिनाई होती है।
- शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक अलंकरण के लिए होता है।
- अनावश्यक वर्ण उपस्थित है जिनका प्रयोग प्रचलन में नहीं है।
- वर्णो के संयुक्त करने की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं है l
- अनुस्वार एवं अनुनासिक का के प्रयोग में एकरूपता का अभाव है।
देवनागरी लिपि में किए गए सुधार :-
- बाल गंगाधर का तिलक फोंट।
- सावरकर बंधुओं का ‘अ’ की बारहखड़ी।
- श्यामसुंदर दास का पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार का प्रयोग का झुकाव।
- गोरख प्रसाद का मात्राओं के व्यंजन के बाद दाहिनी तरफ अलग रखने का सुझाव
- शिक्षा मंत्रालय के देवनागरी लिपि संबंधित प्रकाशन ‘मानक देवनागरी वर्णमाला’ (1966) हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ (1967) देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण (1967) आदि
- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित आचार्य नरेंद्र देव समिति का गठन (1947) और उसकी सिफारिशें
- काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘अ’ की बाराखडी और श्रीनिवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय