विश्लेषण विधि (Analytic Method ) क्या होती है?
एनालिटिक्स (Analytic) शब्द अंग्रेजी के एनालिसिस (Analysis) से बना है। एनालिसिस शब्द का अर्थ “ अलग करने की प्रक्रिया” होता है l अर्थात विश्लेषण विधि अलग करने की प्रक्रिया पर आधारित है।

इस विधि में वस्तु या समस्या को संपूर्ण रूप से अध्ययन से प्रारंभ किया जाता है। और समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए उसे छोटे-छोटे खंडो में बांट कर उसका अध्ययन व विवेचना किया जाता है।
विश्लेषण विधि की सहायता से किसी भी समस्या के कठिन भाग का विश्लेषण करके समस्या के हल को प्राप्त किया जाता है। यह विधि चिंतन स्तर (Reflective Level ) का शिक्षण और अधिगम कराती है। विश्लेषण विधि तर्क प्रधान विधि है । वर्तमान में इस शिक्षण की वैज्ञानिक विधि के रूप में विकसित किया गया है ।
विश्लेषण विधि के गुण (Merit of Analytic Method ) :-
- इस विधि में विद्यार्थी अत्यधिक क्रियाशील रहते हैं । क्योंकि इस विधि में छात्र क्या ?, क्यों? और कैसे? का उत्तर खोजते हैं। जिससे विद्यार्थियों के मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
- इसके द्वारा विद्यार्थी स्वयं किसी समस्या का हल वा उत्पत्ति खोज सकते ।
- यह विधि विद्यार्थियों में तर्क, स्मरण, निर्णय आदि शक्तियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- विश्लेषण विधि द्वारा सीखा गया ज्ञान स्थाई होता है।
- यह विधि विद्यार्थियों में आत्मविश्वास उत्पन्न करती है।
- यह विधि स्वयं करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है।
- यह विधि मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है।
- इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में अन्वेषण करने की क्षमता व आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- इस विधि में मनोवैज्ञानिक था तथा तार्किकता का सुंदर समन्वय होता है।
- इस विधि द्वारा विद्यार्थी धीरे-धीरे ज्ञान प्राप्त करता है जिससे उसमें स्पष्टता आती है।
विश्लेषण विधि के दोष (Demerit of Analytic Method ) :-
- यह एक कठिन विधि है जिससे विद्यार्थियों में नीरसता उत्पन्न होती है ।
- इस विधि द्वारा गति व कौशल प्राप्त करना कठिन होता है।
- प्रत्येक विषय का शिक्षण इस विधि द्वारा असंभव है।
- प्राथमिक स्तर पर इस विधि को प्रभावशाली ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।
- यह एक लंबी विधि है जिसमें समय अधिक लगता है।
- इस विधि में अधिक शक्ति का व्यय होता है।
- इस विधि के प्रयोग के निर्धारित समय में पाठ्यक्रम को समाप्त नहीं किया जा सकता है ।
- प्रत्येक अध्यापक इस विधि का प्रयोग करने में सफल नहीं हो पाता है ।
- इस विधि के प्रयोग में शिक्षक को प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता पड़ती है।
- इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में क्रियाशीलता एवं शीघ्रता नहीं बढ़ाई जा सकती है